दमोह – हमारी भारतीय संस्कृति में पर्वों का विशेष महत्व होता है हर दिन कोई ना कोई उत्सव जीवन को हंसी खुशी व रिश्तो को मजबूत बनाने में पर्वों का अहम योगदान है होली पर्व बुराइयों को भुलाकर खुशियां बांटने और पूरे समाज को संदर्भ के साथ जोड़ने का काम करता है इसलिए कहते हैं बुरा ना मानो होली है होली के पर्व में लोग तमाम भेदभाव बुराइयों को भुलाकर एक साथ होली खेलते हैं और होली खेलने की परंपरा बरसों पुरानी है वहीं एक दूसरे को होली पर्व की बधाई है और खुशियां बांटने के लिए रंग डालकर मुंह मीठा करने के लिए गड़िया घुल्ला खिलाते हैं और फागों की टोलियां गाते हुए रंग गुलाल की होली खेलते है यह परंपरा वर्षो पुराने समय से गांव देहात में आज भी जीवित हैं जो धार्मिक स्थलों में फागें की टोलियां परमा के दिन भर गांव में फागें गाते हुए रंगोत्सव मनाते हैं गौरतलब है बुंदेलखंड अंचल के कई इलाकों में होली मनाने की प्रथा अनोखी है कहीं-कहीं पहले ही फागें होती है इसी तरह मथुरा में फूलों की होली की तर्ज पर आज बांदकपुर के समीप जुझार गांव में होली का पर्व पूरे गांव के लोग एक साथ हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं गांव की सभी होली प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर में एकत्रित होते हैं जहां पर सभी एक दूसरे को रंग गुलाल डालकर होली खेलते हैं इसके साथ एक दूसरे पर रंगे बिरंगे फूलों की बौछार करते हैं इसके लिए एक दिन पहले से ही फूलों को संरक्षित करके रखा जाता है राजन असाटी ने बताया कि परमा के दिन फूलों की होली मनाने की परंपरा बरसों पुरानी है।