नई दिल्ली..- कोरोना आपदा काल मे यूं तो परेशानी मे 90 प्रतिशत लोग है. मजदूर सबसे ज्यादा वो परेशान है…. तो मजदूर के पास क्या प्रमाण की वो मजदूर है.. एक नया विधेयक लाया जायगा ? . मजदूर है पर सर्टिफिकेट नहीं है.. सरकार इनके लिए भी नागरिकता संशोधन जैसा कोई बिल विधेयक ला सकती है. क्योंकि ये फैक्ट्री दुकान मकान मे, ढाबों, चाय दुकान, कपड़ा दुकान, मॉल, शौपिंग सेंटर, ट्रक ड्राइवर हेल्पर, मीडिया के लोकल ग्रामीण कस्बाई पत्रकार, हॉकर, किसी भी
इवेंट मे हर तरह की श्रेणी काम मे करने वाले, रिक्शा चलाने वाले.. प्रमाणपत्र विहीन नेतृत्व विहीन लोग के पास प्रमाण पत्र बनवाने की कपैसिटी होती तो मजदूर नहीं होते.. जान उनकी जा रही.. दूसरे नंबर उन्हीं मे से ही है पर डेली कमाने खाने वाले लोग हैं. हम कलाकार वर्ग मे हालात अलग अलग है. मैंने मुंबई से कुछ अपडेट लिए.. पता चला कि टीवी सीरिअल मे अभिनय करने वालों को वर्क के 90 दिनों के बाद dihari या तय पैसे मिलते हैं. उसमे भी तीस percent एजेंट, Co ordinator /या dalal ya kisi any का होता है. Maximum आर्टिस्ट(बड़े स्टार्स को छोड़ के अधिकांश) paying गेस्ट के रूप मे, किराये पर, झुग्गी बस्तियों मे बसर करते हैं. अनेक सूइसाइड करते रहे हैं अभी एक दिन पहले भी एक actress ने मानसिक तनाव मे आत्म हत्या की. एक बीमार आर्टिस्ट इलाज के लिए तड़प कर संदेश शेयर किए..
रही बात जादू की..
यहाँ भी वर्गीकृत करे तो हालात वैसा ही है कम या ज्यादा. पर यहां पब्लिसिटी प्रेमी ज्यादा है.
बात मेला और उस से जुड़े लोगों की करे तो उनकी स्थिति बहुत दयनीय है. हजारो लोगों और उनके समान कहीं दूसरे शहर मे फंसे है या वहां नष्ट हो रहे. केयर taker को घर आने की क्या कहें, खाने तक रहने तक कि स्थिति दयनीय है.
सरकार मदद करे भी तो किसे. बड़े उद्योग पति फर्स्ट नंबर पर है.. वहां से कुछ बचे तो असंगठित क्षेत्रों के बारे मे सोचा जाए… वोट इनसे लेना है इसलिए कुछ तो करेंगे ही पर देर से… मदन भारती