बड़ी दीक्षा के साथ ही नवदीक्षिता प्रणिधिजी धर्मदास श्रमण समुदाय में सम्मिलित

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बड़ी दीक्षा के साथ ही नवदीक्षिता प्रणिधिजी धर्मदास श्रमण समुदाय में सम्मिलित

 

ग्राम खवासा में नवदीक्षिता प्रणिधिजी की बड़ी दीक्षा सम्पन्न

खवासा/थांदला/झाबुआ। (मनीष वाघेला)

शाश्वत सुख मोक्ष पाने के लिए संयम मार्ग पर साधक आत्मा चार प्रकार से गमन करती है एक वह जो श्रमण धर्म को अपना कर उसे वमन कर देती है, दूसरी वह जो उसे भोग का हेतु मानती है, तीसरी उसे सुरक्षित रखती है जबकि चौथी उसमें वृद्धि करती हुई अपना लक्ष्य साध लेती है। उक्त प्रवचन परंपरानुरूप एक कहानी के माध्यम से जिन शासन गौरव जैनाचार्य उमेशमुनिजी म.सा. “अणु” के प्रथम शिष्य धर्मदास गण प्रवर्तक पूज्य श्रीजिनेंद्रमुनिजी म.सा. ने नव दीक्षिता प्रणिधिजी म.सा. को बड़ी दीक्षा के पाठ ग्रहण करवाते हुए उन्हें व उपस्थित धर्म परिषद को दिए।

25 दिसंबर को करेमि भंते के पाठ से तीन कर्ण तीन योग से सर्वव्यापी सावद्य क्रिया के त्याग के पश्चात सर्व विरति व्रत अंगीकार करने के पश्चात नव दीक्षिता पूजा महासती श्रीप्रणिधिजी म.सा. ने आज पर्वतकश्री के मुखारविंद से छेदोपस्थानिक चरित्र ग्रहण कर लिया। राजवाड़ा चौक खवासा में अणु जिनेंद्र दरबार में धर्मादाय गण के नायक आगम विशाल बुद्ध पुत्र प्रवर्तक पूज्य गुरुदेव, मधुर गायक पूज्य गिरिशमुनिजी, पूज्य रविमुनिजी, साध्वी प्रमुख पूज्य गुराणी पुण्य पुंज पुण्याशीलाजी, पूज्याश्री अनुपमशीलाजी आदि ठाणा के पावन सानिध्य में बदनावर, रतलाम, झाबुआ, मेघनगर, थांदला, पेटलावद, करवड़ स्थानों से आये सैकड़ो श्रावक – श्राविकाओं की उपस्थिति में प्रवर्तकश्री ने नवदीक्षिता प्रणिधिजी म.सा. के पूर्व पर्याय का छेदन कर पंच महाव्रत आरोपित कर उन्हें विधि पूर्वक संत समुदाय में सम्मिलित कर लिया। पूज्य श्री ने दसवें कालिक सूत्र के प्रथम चार अध्ययन के माध्यम से साधु समाचारी का सरल, सार गर्भित एवं विशद विवेचन कर नव दीक्षिता महाराज साहब को मोक्ष के राजमार्ग पर सजगता से चलने की प्रेरणा दी। पाँच महाव्रत, 52 अणाचिर्ण, छः काय जीवों का स्वरूप समझाते हुए पूज्यश्री ने कहा कि इनकी पूर्व जानकारी होने पर यातनामय साधना की जा सकती है, आपने नवदीक्षिता को कषायों का शमन करते हुए क्षमा आदि धर्म गुण अपना कर संयम साधना की सीख दी। पूज्यश्री ने छोटी और बड़ी दीक्षा का अंतर बताते हुए कहा कि आत्मा छोटी दीक्षा करेमि भंते के पाठ से सभी पापों से विरत हो जाता है, लेकिन वह सन्त समुदाय में शामिल नही होता है, उसे अपना आहार आदि कार्य स्वयं व अलग ही करना होता है, जबकि बड़ी दीक्षा में पांच महाव्रत का पूर्ण रूपेण आरोपण किया जाता है जिसके बाद ही नव दीक्षित विधि पूर्वक संत समुदाय के सम्मिलित हो जाते है। इस अवसर पर पूज्य गिरीशमुनिजी एवं रविमुनिजी ने मधुर स्वर में स्तवन के माध्यम से नव दीक्षिता को सावधान करते हुए संयम साधना में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए उनकी सफल आराधना की मंगल कामना की। धर्मसभा में नवदीक्षिता के सांसारिक परिजन, धर्मदासगण के पदाधिकारी, पूज्य श्री नन्दाचार्य साहित्य समिति के पदाधिकारी, आल इण्डिया जैन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (आईजा) के पदाधिकारी भी उपस्थित थे। धर्मसभा का कुशल संचालन श्रीसंघ के कमल चौपड़ा ने किया। आगन्तुक अतिथियों के आतिथ्य सत्कार व गौतम प्रसादी का लाभ खवासा श्रीसंघ द्वारा लिया गया।

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