धार्मिक आयोजन स्नान यात्रा में इस बार नहीं दिखी रौनक
लू लगने से बीमार भगवान जगन्नाथ स्वामी सफ़ेद वस्त्र धारण किये हुये
पन्ना। मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध म.प्र. के पन्ना नगर में अनूठी धार्मिक परम्परायें प्रचलित हैं, लेकिन इस वर्ष कोरोना इफेक्ट ने यहाँ के सभी तीज त्योहारों और धार्मिक समारोहों की रौनक छीन ली है। भव्यता, धूमधाम और राजशी ठाठबाट के साथ मनाये जाने वाले रथयात्रा महोत्सव में भी कोरोना का साया मंडरा रहा है। मालुम हो कि ठीक जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां निकलने वाली रथयात्रा महोत्सव की परम्परा डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। परम्परानुसार पवित्र तीर्थों के सुगंधित जल से स्नान करने के कारण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ स्वामी लू लगने से आज बीमार पड़ गये हैं। भगवान के ज्वर पीड़ित होने का यह धार्मिक आयोजन स्नान यात्रा के रूप में पन्ना के श्री जगन्नाथ स्वामी मन्दिर में आज पहली बार श्रद्धालुओं की गैरमौजूदगी में बिना बैण्ड बाजे के सन्नाटे में सम्पन्न हुआ। आज के इस आयोजन में महाराज राघवेन्द्र सिंह के अलावा मन्दिर समिति के 7 – 8 लोग व पुजारी शामिल रहे। भगवान के बीमार पडने के साथ ही रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ हो गया है।
कोरोना के साये में संपन्न हुआ घटयात्रा कार्यक्रम
उल्लेखनीय है कि डेढ़ शताब्दी से भी अधिक पुरानी हो चुकी पन्ना के रथयात्रा महोत्सव की स्नान यात्रा कोरोना संकट के चलते फीकी रही। राजशाही जमाने से चली आ रही परम्परा के अनुसार आज सुबह 9 बजे बड़ा दीवाला स्थित जगदीश स्वामी मंदिर में भगवान की स्नान यात्रा के कार्यक्रम की शुरूआत हुई। पन्ना राज परिवार के सदस्य सहित मंदिर के पुजारियों तथा गिनती के कुछ खास लोगों द्वारा गर्भगृह में विराजमान भगवान जगदीश स्वामी उनके बड़े भाई बलभद्र, बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को आसन में बैठाकर मंदिर प्रांगण स्थित लघु मंदिर में बारी-बारी से लाकर विराजमान कराया गया। भगवान की स्नान यात्रा में पहुंचने पर पहली बार बैण्डबाजों व आतिशबाजी से उनका स्वागत नहीं किया गया। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर भीतर से ताला जड़ दिया गया था ताकि श्रद्धालु अन्दर न आ सकें। ऐसी स्थिति में भगवान की स्नान यात्रा के दौरान मंदिर प्रांगण में गूंजने वाली जय-जयकार भी सुनाई नहीं दी। मंदिर के पुजारियों तथा ब्राम्हणों द्वारा वेद मंत्रों के साथ भगवान की पूजा अर्चना की गई तथा हजार छिद्र वाले मिट्टी के घड़े से भगवान को स्नान कराया गया। स्नान के साथ ही मान्यता के अनुसार भगवान लू लग जाने की वजह से बीमार पड़ गये। ।जिन्हे सफेद पोशाक पहनाई गई और भगवान की भव्य आरती की गई। भगवान के स्नान यात्रा के बाद चली आ रही परम्परा के अनुसार मिट्टी के घट श्रद्धालुओं को लुटाये जाने की परम्परा का निर्वहन श्रद्धालुओं की गैरमौजूदगी के कारण नहीं हो पाया। मंदिर के बाहर खड़े कुछ श्रद्धालुओं को घट प्रदान किये गये जिन्हें वे खुशी के साथ सुरक्षित तरीके से अपने घर ले गये। वर्षभर खुशहाली की कामना के साथ अपने घर के पूजा स्थल में प्राप्त घट को रखकर उन्हें पूजा जायेगा। कार्यक्रम के बाद बीमार पड़े भगवान को फिर से बारी-बारी करके आशन में बैठाते हुये मंदिर के गर्भगृह के अंदर ले जाकर विराजमान कराया गया और मंदिर के पट 15 दिन तक के लिये बंद हो गये। भगवान के बीमार हो जाने के बाद अब श्रद्धालुओं को 15 दिन तक उनके दर्शन प्राप्त नहीं होंगे। मंदिर के पुजारी ही मंदिर के अंदर प्रवेश कर बीमार पड़े भगवान की पूजा अर्चना करेंगे। 15 दिन तक बीमार पड़े भगवान सफेद वस्त्रों में ही रहेंगे। अमावस्या के दिन भगवान को पथ प्रसाद लगेगा और इसके बाद अगले दिन भगवान की धूप कपूर झांकी के रूप में जाली लगे पर्दे से श्रद्धालुओं को दर्शन प्राप्त होंगे तथा दोज तिथि से भगवान की रथयात्रा शुरू हो जायेगी।