शहडोल। आदिवासी अंचल में सीएम शिवराज ने 2016-17 में मेडिकल कॉलेज की सौगात दी थी। लगभग 4 साल बीतने के बाद भी मेडिकल कॉलेज शहडोल में कई महत्वपूर्ण विभाग शुरु नहीं हो सके हैं जिस कारण संभागीय मुख्यालय स्थित जिला अस्पताल में मरीजों का ज्यादा दबाव रहता है।
मेडिकल कॉलेज आज भी शहडोल जिला अस्पताल पर पूरी तरह आश्रित हैं। महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ मेडिकल कॉलेज की जगह जिला अस्पताल शहडोल में बैठकर ओपीडी देखते हैं। पिछले 3 सालों में मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा महिला एवं शिशु रोग विभाग खोलने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। जब आदिवासी अंचल में एक के बाद एक मासूमों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है तब इसको लेकर कवायद तेज की गई है। मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की दलील है कि 2021 तक किसी भी प्रकार से महिला एवं शिशु रोग विभाग को शुरु कर लिया जाएगा। मेडिकल कॉलेज प्रबंधन अभी प्रसूति विभाग को जल्द से जल्द खोलने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसके लिए लेबर रूम और ऑपरेशन थियेटर के निर्माण का काम भी वर्तमान में चल रहा है।
मेडिकल कॉलेज में नहीं है महिला एवं शिशु विभाग की ओपीडी
मेडिकल कॉलेज शहडोल में अभी तक प्रसूति विभाग एवं शिशु रोग विभाग का संपूर्ण संचालन नहीं हो सका है। मेडिकल कॉलेज में अन्य विभागों की ओपीडी शुरु है जबकि ये दोनों विभाग अब भी जिला अस्पताल शहडोल पर आश्रित हैं। मेडिकल में पदस्थ महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञ जिला अस्पताल में बैठकर ओपीडी देखते हैं और वहीं मरीजों का उपचार करते हैं। बताया जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा महिला रोग एवं शिशु रोग विभाग खोलने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं किया गया है।
अभी कर रहे जबलपुर रैफर सफर लगभग 5 घंटे का
शहडोल मेडिकल कॉलेज में व्यवस्था नहीं होने के कारण जिला अस्पताल के डॉक्टर नवजातों को जबलपुर मेडिकल कॉलेज के लिए रैफर कर रहे हैं। शहडोल से जबलपुर मेडिकल कॉलेज की दूरी लगभग 5 घंटे की हैं। वहीं दूसरी ओर दूरी ज्यादा होने के कारण परिजन गंभीर रूप से बीमार बच्चों को जबलपुर ले जाने में हिचक्कते हैं। शहडोल में संसाधनों की कमी के कारण बच्चों की मौत हो जाती है। इस प्रकार का मामला आए देखने को मिलता है।
इनका कहना हैं
यह बात सही है कि मेडिकल कॉलेज में महिला एवं शिशु विभाग की ओपीडी शुरु नहीं हो सकी है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। 2021 तक दोनों विभाग की ओपीडी शुरु होने की संभावना है। लेबर रूम और ब्लड बैंक तैयार हो चुका है। अन्य निर्माण भी जारी हैं।
डॉ. मिलिंद सिरालकर
डीन, मेडिकल कॉलेज शहडोल