श्याम शाह मेडिकल कॉलेज को बड़ा झटका: एक साथ तीन चिकित्सकों ने दिया इस्तीफा, अव्यवस्थाओं से हताश डॉक्टर। उपसंपादक सम्मति दास गुप्ता की रिपोर्ट

इस्तीफे से मचा हड़कंप, विभागों में इलाज प्रभावित होने की आशंका,डीन एवं प्रबंधन पर उठे सवाल

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रीवा (कुंडेश्वर टाइम्स)
रीवा को {मेडिकल हब} के रूप में विकसित करने के लिए प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला सतत प्रयासरत हैं। नित नई स्वास्थ्य योजनाएं, अधोसंरचना में निवेश और सुपर स्पेशलिटी सुविधाओं की शुरुआत उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रही हैं। लेकिन इन तमाम कोशिशों के बावजूद श्याम शाह मेडिकल कॉलेज, रीवा की अंदरूनी हालत सरकार की नीतियों से मेल नहीं खा रही है। कॉलेज में डॉक्टरों का लगातार इस्तीफा देना व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर रहा है।

हाल ही में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से दो विशेषज्ञ डॉक्टरों और गांधी मेमोरियल अस्पताल (जीएमएच) की एक महिला चिकित्सक ने इस्तीफा दे दिया है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ने की आशंका गहरा गई है।

उम्मीदें थीं नए डीन से, लेकिन हालात और बिगड़े

श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में नए डीन की नियुक्ति से यह अपेक्षा की जा रही थी कि संस्थान की आंतरिक व्यवस्थाएं सुधरेंगी और डॉक्टरों की समस्याओं का समाधान होगा। लेकिन डॉक्टरों के बीच बढ़ती असंतुष्टि इस बात का संकेत है कि बदलाव की दिशा उलटी हो चली है। चिकित्सकों का कहना है कि न तो विभागों में सुविधाएं हैं और न ही प्रशासन का कोई सकारात्मक रवैया। अस्पतालों में काम करने का माहौल लगातार खराब हो रहा है।

इस्तीफे से मचा हड़कंप, विभागों में इलाज प्रभावित होने की आशंका

डॉक्टरों के इस्तीफे की खबर से कॉलेज प्रशासन सकते में है। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में पहले से ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। ऐसे में दो वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट के इस्तीफे से यूरोलॉजी विभाग की सेवाएं ठप पड़ सकती हैं। वहीं, जीएमएच में स्त्री रोग विशेषज्ञ के इस्तीफे से महिला मरीजों को विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

किन चिकित्सकों ने दिया इस्तीफा

सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग से डॉ. विवेक शर्मा और डॉ. विजय शुक्ला ने अपना इस्तीफा डीन को सौंप दिया है। डॉ. विवेक शर्मा ने पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए पद त्यागने की बात कही है, जबकि डॉ. विजय शुक्ला के इस्तीफे के पीछे कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है। उधर, जीएमएच की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पना यादव ने भी अपना पद छोड़ने का निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि विभाग में उनके अन्य सहकर्मियों से सामंजस्य की कमी थी और वे अब अपना पूरा समय निजी अस्पताल को देना चाहती हैं।

पहले भी कई डॉक्टरों ने छोड़ी नौकरी

श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में यह कोई पहली घटना नहीं है जब एक साथ कई डॉक्टरों ने इस्तीफा दिया हो। इससे पहले नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. रोहन द्विवेदी और सीटीवीएस सर्जन डॉ. राकेश सोनी भी अपनी सेवाएं छोड़ चुके थे। हालांकि, उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला के हस्तक्षेप और व्यक्तिगत समझाइश के बाद दोनों डॉक्टरों ने अपनी सेवाएं पुनः शुरू की थीं। इन प्रकरणों में कॉलेज प्रबंधन की भूमिका निष्क्रिय बनी रही थी।

सिर्फ एक नियुक्ति, वह भी अपर्याप्त

यूरोलॉजी विभाग में दो विशेषज्ञों के इस्तीफे के बाद विभाग की सेवाओं को सुचारू रखने की दिशा में अब तक केवल एक डॉक्टर की नियुक्ति हुई है। डॉ. अभिनव द्विवेदी ने हाल ही में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में कार्यभार संभाला है। लेकिन एक डॉक्टर से पूरे विभाग की ज़िम्मेदारी निभा पाना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।

डीन और प्रबंधन पर उठते सवाल

कॉलेज प्रशासन, विशेष रूप से डीन की कार्यशैली को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में संसाधनों की भारी कमी है, विभागों में सहयोग का अभाव है और चिकित्सकों की कोई सुनवाई नहीं हो रही। प्रशासनिक लापरवाही और नेतृत्व की कमी की वजह से संस्थान की साख पर असर पड़ रहा है। सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए ज़मीनी स्तर पर व्यवस्था का मजबूत होना आवश्यक है, लेकिन यहां हालात इसके ठीक उलट हैं।

क्या कहना है विशेषज्ञों का

चिकित्सा क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि सुपर स्पेशलिटी जैसे अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता सर्वोपरि होती है। यदि डॉक्टरों को काम करने के लिए अनुकूल वातावरण और आवश्यक सहयोग नहीं मिलेगा, तो वे निजी क्षेत्र की ओर रुख करेंगे। इससे सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं कमजोर होंगी और आमजन को गुणवत्तापूर्ण इलाज से वंचित रहना पड़ेगा।

उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला का संकल्प सराहनीय है, लेकिन वह तभी सफल हो सकता है जब मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों के संचालन में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और मानवीय दृष्टिकोण लाया जाए। डॉक्टर केवल सेवा देने वाले नहीं होते, वे सिस्टम के संवेदनशील स्तंभ हैं उन्हें व्यवस्था में ‘नम्र भागीदार’ नहीं, बल्कि ‘सुनने योग्य सहभागी’ बनाया जाना चाहिए।

सबसे बड़ी बात

रीवा जैसे उभरते मेडिकल सेंटर में अगर शासकीय चिकित्सा संस्थान के डॉक्टर हताश होकर पद छोड़ने लगें, तो यह केवल व्यवस्थागत विफलता नहीं, बल्कि जनहित की गंभीर उपेक्षा है। सरकार की नीतियां और योजनाएं कागज़ पर शानदार हो सकती हैं, पर जब तक उनका प्रभाव जमीन पर नजर न आए, तब तक वे अधूरी ही रहेंगी।

रीवा की जनता को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिलें इसके लिए जरूरी है कि श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के भीतर की खामियों को स्वीकार कर उन्हें दूर किया जाए, न कि सिर्फ आंकड़ों और उद्घाटनों से हकीकत पर पर्दा डाला जाए।

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