संयतमुनि ने करवाई वर्षीतप आराधकों को आलोचना विधि
अक्षय होता है सुपात्र दान व तपस्या का फल – संयतमुनि
तप व सुपात्र दान से महान बनी अक्षय तृतीया – संयतमुनि
मनीष वाघेला
थांदला। जिन शासन के इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के निरन्तर 400 उपवास का प्रथम पारणा श्रेयांस कुमार के हाथों इक्षुरस से हुआ था तभी से अक्षय तृतीया का जैन परम्परा में विशेष महत्व है। ऋषभदेव भगवान इस युग के प्रथम राजा, प्रथम भिक्षु, प्रथम तपस्वी व धर्म की स्थापना करने वाले प्रथम तीर्थंकर हुए है। उन्होंने ही राजा के रूप में सभी को असि-मसि-कृषि की शिक्षा दी, सम्बन्धो की स्थापना कर नैतिकता से जीवन जीने की विधि बताई। उक्त उदगार जिनशासन गौरव श्री उमेशाचार्य के शिष्य अणुवत्स पुज्यश्री संयतमुनिजी ने वर्षीतप आराधकों के लिए आयोजित आलोचना प्रायश्चित विधि कार्यक्रम में दिए। कोरोना संक्रमण के कारण इस वर्ष प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनि के सानिध्य में कुशलगढ़ (राजस्थान) में होने वाले भव्य सामूहिक पारणें का कार्यक्रम निरस्त हो जाने से थांदला श्रीसंघ ने स्थानीय वर्षीतप तपस्वीयो की आलोचना विधि का कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें वर्षीतप करने वाले भरत सुंदरलाल भंसाली (17 वा वर्षीतप), श्रीमती आशा झमकलाल श्रीमाल (9 वा),श्रीमती आशा जितेन्द्रजी पावेचा (दूसरा), श्रीमती किरण कमलेश छाजेड़ (दूसरा), श्रीमती इंदुबाला यतिशचन्द्र छिपानी, श्रीमती किरण प्रमोद पावेचा, श्रीमती आशुका कमलेश लोढा, श्रीमती प्रतिभा संदीप लोढा, श्रीमती कामिनी अरविंद रुनवाल, श्रीमती पिंकी इंदर रुनवाल एवं एकासन वर्षीतप आराधक सर्वश्री ललित भंसाली, मुकेश चौधरी, पवन शैतानमल नाहर, अनिल मुथा(रायपुरिया) श्रीमती कुसुम मनोहरलाल पोरवाल, श्रीमती प्रिया प्रफुल्ल तलेरा, श्रीमती सपना प्रदीप व्होरा, श्रीमती अलका संजय व्होरा, श्रीमती मनोरमा शैतानमल लोढ़ा कार्यक्रम में उपस्थित रहकर प्रायश्चित-आलोचना विधि की । उल्लेखनीय है पूरा आयोजन शासन की गाइड लाइन के अनुसार सोशल डिस्टेंश का पालन करते हुए आयोजित किया गया जिसमें केवल तपस्वियों की आलोचना प्रायश्चित विधि अणु वत्स संयतमुनिजी, नव दीक्षित सुहासमुनिजी ठाणा – 2 एवं पूज्याश्री निखिलशीलाजी मसा आदि ठाणा – 4 के पावन सानिध्य में सम्पन्न हुई। इस अवसर पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए अणुवत्स संयतमुनि ने कहा कि तप व सुपात्र दान का फल अक्षय होकर मोक्ष दिलाता है इसीलिए आज का दिन अक्षय तृतीया के रूप में।प्रसिद्ध हुआ। आज के दिन अनेक भव्य आत्माओं ने संयम को स्वीकार किया है उनमें से एक यहाँ विराजित विदुषी साध्वी निखिलशीलाजी भी है जिनके संयमी जीवन के 27 वर्ष पूर्ण हो गए है ऐसे में उन्होंने इस दिन संयम अंगीकार करने वाली समस्त संयमी आत्माओं की मंगलकामना की। श्रीसंघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत ने सकल संघ कि ओर से सभी वर्षीतप आराधकों के तप की अनुमोदना करते हुए कहा कि जैन धर्म मे अनेक प्रकार के तपो का विधान है उसमें वर्षीतप का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि यह तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से जुड़ा हुआ है। अनेक आत्मा उनके समय से चले आ रहे तप का यथाशक्ति अनुसरण करते हुए अपनी आत्मा का कल्याण तो कर ही रहे है वही जिनशासन को भी दीपा रहे है। तपस्वियों का बहुमान श्रीसंघ के साथ घोड़ावत परिवार,रमेशचन्द्र श्रीश्रीमाल, शैतानमल लोढ़ा, महिलाध्यक्ष शकुंतला कांकरिया द्वारा भी किया गया। साध्वी मण्डल द्वारा अनुमोदना में स्तवन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर धर्मसभा में नर्स हैलन मावी का साध्वीजी की उत्कृष्ट सेवा के लिए संघ द्वारा बहुमान किया गया। संचालन सचिव प्रदीप गादिया ने किया।
इन्होंने किया वर्षीतप आराधकों का बहुमान
इस अवसर पर स्थानकवासी जैन श्रीसंघ कि ओर से अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत, श्रीसंघ मंत्री प्रदीप गादिया, ललित जैन नवयुवक मण्डल अध्यक्ष कपिल पिचा, सन्त वैयावच्च प्रभारी मंगलेश श्रीमाल ने सभी आगन्तुक वर्षीतप आराधकों का शाल माला व संघ प्रभावना से बहुमान किया वही प्रकाशचन्द्र, चंद्रकांत, गोपाल, जितेन्द्र घोड़ावत परिवार, रमेशचन्द्र हेमंत श्रीमाल परिवार, शैतानमल अंकित लोढ़ा परिवार बामनिया वाले, महिला मण्डल अध्यक्ष शकुंतला बुद्धिलाल कांकरिया परिवार, मनीष मनोज जैन परिवार, इंदुबहन महावीर गादिया परिवार, नरेंद्रकुमार लुणावत परिवार आदि ने सभी वर्षीतप आराधकों को प्रभावना देकर बहुमान करते हुए उनकी तपस्या की सुखसाता पूछी।
हेलन मावी सिस्टर की सेवा कार्यों की सराहना
अक्षय तृतीया के इस लघु आयोजन में सिविल अस्पताल में अनवरत सेवा देने वाली सिस्टर हेलन मावी द्वारा विगत दिनों निःस्वार्थ भाव से जैन माताजी महासती श्रीदिव्यशीलाजी की सेवा कार्यों के लिए श्रीसंघ परिवार द्वारा उनके कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें शाल, माला व चांदी के सिक्के से बहुमान किया गया। सभा का संचालन प्रदीप गादिया ने व आभार कपिल पिचा ने माना। सभी तपस्वियों ने अपनी वर्षभर की तप आराधना के पारणें अपने अपने घरों पर ही किये।