नेताओं कि बिसात जनता से बड़ी नहीं है फिर भी प्रशासनिक अमला नेताओं कि कठपुतली बने मौन है, कुंडेश्वर टाइम्स उपसम्पादक राजा गौतम की कलम से🖋️

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रीवा जिला बना भ्रष्टाचार का चारागाह प्रशासनिक अधिकारी जनता के नहीं नेताओं की चाकरी करते हैं

रीवा /नागपुर(कुंडेश्वर टाइम्स) – सांसद और बिधायक बनने की चाहत मे जनता की चौखट मे मिमियाने वाले कथित नेता जब ओहदा नशीन हो सांसद या बिधायक बन जाते हैं तब पांच वर्ष के लिए सत्ता की चकाचौध मे मानो अंधे हो जाते हैं. जिस बिकास के नारे के दम पर गावों की मासूम जनता को धनबल के द्वारा जनप्रतिनिधि बनते हैं उसकी वसूली के लिए प्रशासनिक गठजोड़ भी कम चिंता का बिषय नहीं है. आश्चर्य तो तब लगता है जब बरिष्ठ प्रशाशनिक अफसरों द्वारा नेताओं की चमचागिरी करते उनके पीछे पीछे हाथ बंधे गुलामो की भांति चलते नजर आते है. रीवा जिले मे भ्रष्टाचार की कहानी कोई नई नहीं है परन्तु जो नेता या सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार या अन्याय के बिरुद्ध सक्षम होते हुए भी निर्णय न दे तो उसे क्या कहेँगे ? जिले मे राजस्व, सिचाई एवं पेयजल, शिक्षा, पी डब्ल्यू डी, पुलिस बिभाग, आर टी ओ, अस्पताल, कमिश्नर कार्यालय,जिला कलेक्टर कार्यालय जैसे तमाम सरकारी बिभागों मे भ्रष्टाचार पसरा पड़ा है.

जिले के अंतर्गत रीवा मुख्यालय से संलग्न तहसीलों मे पदस्थ बाबुओं कि मनमानी का कोई जबाब नहीं. कार्यालय मे घंटो किसानों से बाबू बात नहीं करते. कोई किसान समस्या लेकर आया तो बिना चाय पानी के बाबुओं का मुंह नहीं खुलता है. आश्चर्य प्रतीत होता है कि जब अपनी पारिवारिक सुख सुविधाओं या अन्य प्रकार के भ्रष्टाचार को अमली जामा पहनाने के लिए शिक्षा बिभाग का बाबू कमिश्नर कार्यालय मे अपना स्थानांतरण करवा लेता है और वह बरिष्ठ कार्यालय की धौश देकर अधीनस्थों से कार्य करवाता है. इस प्रकार के कई अन्य प्रकरण संगीन बने हुए हैं जिन्हे निगरानी मे लेकर उचित कार्यवाई करने की जरुरत है. सांसद जनार्दन मिश्रा और बिधायक के पी त्रिपाठी के घर से तीन किलोमीटर के फासले पर बनी पानी टंकी का निर्माण हुए लगभग तीस साल हो गए सरकारी खाते से वहा नियुक्ति व्यक्ति को प्रतिमाह बेतन दिया जाता है लेकिन दुर्भाग्य की आज तक उस टंकी से पानी की एक बूंद सप्लाई नहीं हुई और लोग दूषित पानी पीने को बाध्य होकर मौत को गले लगाने मजबूर हैं.
जिला पंचायत अधिकारी रीवा के कार्यालय मे आठ ग्रामपंचायतों के बिस्तारीकरण का कार्य वर्षो से लंबित पड़ा हैं. ग्रामपंचायतों के पुनरगठन जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य के लंबित होने का खामियाजा नागरिकों और किसानों भोगना पड़ता है. राजस्व के क्षेत्र मे पुराने बड़े पटवारी हल्का को संतुलित करने हेतु वर्गीकरण मे हुई धांधली को लेकर किसान जब सम्बंधित तहसील की ओर रुख करता है तों वहां पदस्थ कर्मचारियों किसानों को बाद मे आना कहकर बैरंग भेज दिया जाता है.
स्थानीय स्तर पर व्याप्त समस्याओं के प्रति प्रशासन की उदासीनता से जाहिर होता है की जनसमस्याओं के प्रति न तों जन प्रतिनिधि सतर्क हैं और न ही प्रशासनिक अधिकारी. जिला स्तर पर तहसील, थानों तथा ब्लाक स्तर पर जन समस्याओं के निराकरण के के सार्थक उपाय सुनिश्चित किये जांय.

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