रक्षाबंधन के पावन पर्व अवसर पर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दर्शन प्राप्त किये एवं शक्ति स्वरूपा बहनों के कर कमलों से राखी बंधवाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ – समाचार संपादक मोहन पटेल की खास रिपोर्ट

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शहडोल ( विंध्य सत्ता ) – ब्योहारी – पंचज्योति शक्ति सिद्धाश्रम धाम मैं हजारों गुरु भाइयों बहनों ने रक्षाबंधन के पावन पर्व अवसर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दर्शन किए एवं शक्ति स्वरूपा पूजा शुक्ला, संध्या शुक्ला , ज्योति शुक्ला , बहनों के कर कमलों से राखी बंधवाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हजारों कार्यकर्ताओं ने आकर बहनों से अपनी कलाई पर राखी बंधवाई और शक्ति स्वरूपा बहनों को संकल्प दिया कि हम अपनी बहनों की रक्षा करेंगे नारी का सम्मान करेंगे और राष्ट्र की रक्षा धर्म की रक्षा और मानवता की सेवा करेंगे हम अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे हम अपने संगठन के गुरु भाइयों बहनों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगे और भगवती मानव कल्याण संगठन एवं भारतीय शक्ति चेतना पार्टी का भी कार्य करेंगे इसी अवसर पर गौशाला में गो माता के दर्शन किए फिर दंडी स्वामी जी के दर्शन किए एवं दानवीर के दर्शन करते हुए मोरध्वज की परिक्रमा करते हुए चालीसा भवन में प्रवेश करते चालीसा पाठ का गुणगान किया और इसके बाद में श्री शक्तिपुत्र जी महाराज गुरुवर जी का आशीर्वाद प्राप्त किया हम लोगों को आशीर्वाद दीजिए ताकि हम सभी कार्यकर्ता संगठन का कार्य और धर्म की रक्षा मानवता की सेवा राष्ट्र की रक्षा एवं बहनों की रक्षा नारी का सम्मान एवं इस समाज को नशा मांसाहार से मुक्त कर सकें

रक्षाबंधन का प्रतीक रक्षा सूत्र का महत्व

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श्रावण शुक्ल पूर्णिमा दिन रविवार के दिन रक्षाबंधन का पर्व आया इस दिन बहनें भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह पर्व नारी के प्रति पवित्र भावना की प्रेरणा तो देता ही है साथ ही उसे शक्ति के रूप में स्वीकार करने की शिक्षा भी देता है। पौराणिक कथाओं में इंद्र को देवासुर संग्राम में विजय तभी मिली ,जब देवी शचि ने पवित्र भाव से उन्हें रक्षा सूत्र बांधा।
भारतीय ऋषि परंपराओं का रक्षा सूत्र बांधने में विशेष महत्व है। रक्षाबंधन के दिन आचार्य ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते हैं ।रक्षा सूत्र बांधने का भाव यह है कि यजमान समृद्ध हों और अपने पवित्र कर्तव्य पालन और मर्यादाओं का ध्यान रखें ।रक्षा सूत्र पवित्र भाव से बहन भी भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है। इस दिन व्रत का विधान भी आता है।
जो परिवार व्रत रखते हैं ,उन्हें चाहिए कि इस दिन प्रातः सविधि स्नान करके देवता ,पितर और ऋषियों का तर्पण करें ।दोपहर के बाद इच्छा शक्ति के रूप में ऊनी, सूती या रेशमी पीत वस्त्र लेकर उसमें सरसों , सुवर्ण,केसर ,चंदन अक्षत और दूर्वा रखकर बांध लें, फिर गोबर से लिपे स्थापन पर कलश स्थापित कर उस पर रक्षा सूत्र रखकर उसका यथा विधि पूजन करें। उसके बाद विद्वान ब्राह्मण से रक्षा सूत्र को दाहिने हाथ में बंधवा ले।
इस व्रत के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है -प्राचीन काल में एक बार 12 वर्षों तक देवासुर संग्राम होता रहा जिसमें देवताओं का पराभव हुआ और असुरों ने स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया ।दुखी, पराजित और चिंतित इंद्र देव गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि इस समय न तो मैं यहां सुरक्षित हूं और ना ही यहां से कहीं निकल ही सकता हूं। ऐसी दशा में मेरा युद्ध करना ही अनिवार्य है ।जबकि अब तक के युद्ध में हमारा पराभव ही हुआ है। इस वार्तालाप को इंद्राणी भी सुन रही थीं। उन्होंने कहा -कल सावन शुक्ल पूर्णिमा है। मैं विधान पूर्वक रक्षा सूत्र तैयार करूंगी उसे आप स्वस्तिवाचन करके ब्राह्मणों से बंध वा लीजिएगा ।इससे आप अवश्य विजयी होंगे ।दूसरे दिन इंद्र ने रक्षा विधान और स्वस्तिवाचन पूर्वक रक्षाबंधन कराया जिसके प्रभाव से उनकी विजय हुई तब से यह दिवस रक्षाबंधन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।

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