थांदला। 25 जून 1975 को कांग्रेस सरकार द्वारा देश मे आपातकाल लगाया गया था जिसे देश में उनके विरोधी कला कानून भी कहते है। उस कानून के घोर विरोधी जनसंघी अनेक लोगों ने अपनी आवाज उठाई थी उन्ही में से एक थांदला के राजेन्द्र व्होरा भी है जिन्हें स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था। उन्होंने अपनी बात साझा करते हुए अपनी आप बीती कुछ इस तरह सुनाई।
उस अर्ध रात्री मे एक काला कानुन आध्यादेश के रुप मे केन्द्र सरकार ने पास किया।इन्दिरा सरकार के विरोध मे आंदोलन के अग्रणी जे.पी. को गिरफ्तार कियाऔर सुबह होते-होते सभी विरोधी नेताओं को गिरफ्तार कर जैल मे डाल दिया गया। उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, मोरारजी देसाई, पीलु मोदीजी, राजनारायण जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।
देश मे अपनी सरकार बचाने के लिए इन्दिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगा दिया गया। जगह-जगह से जनसंघ, आर एस एस, स्वतंत्र पार्टी, समाजवादी दल, कम्युनिस्ट पार्टी आदि के लाखो कार्यकर्ताओ को अकारण जैल मे डाल दिया गया। प्रेस पर सेंसरशीप लगा दी गई। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन ग्रह विभाग के अधिन कर दिया गया।
सिर्फ कोर्ट के आदेश से इन्दिरा गांधी व्दारा प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से बचने हेतु यह सभी अवैध कार्य किए गये। दि.26 जुन को झाबुआ जिले मे सबसे पहले मुझे राजेन्द्र व्होरा को गिरफ्तार किया गया उस समय मेरे अतिरिक्त 35 अन्य को भी गिरफ्तार किया गया था।उनमे से 14-15 लोगों को आधी रात मे झाबुआ जैल से इन्दौर ले गये। वहां सेन्ट्रल जैल मे जगह नही होने से सी-आई जैल मे फांसी की सजा वालो के साथ ले जाकर बंद कर दिया गया, जो बाहर रह गये, उन्हे गिरफ्तारी का डर दिखा कर ब्लैकमेल किया गया। कुल मिलाकर पुरे देश मे भय और आंतक का वातावरण बनाया गया।
इन्दौर जैल मे रहने के दौरान माननीय सुदर्शनजी का सानिध्य प्राप्त हुआ। इसके अलावा कद्दावर नेता कैलाश जोशी, वीरेन्द्र सखलेचा, सुन्दरलाल पटवा, अष्ठानाजी, खाम्बोटेजी, डाँ. बसन्त लोकरे, वी. एस. कोकजे सा., डॉ.सुधाकर मूल्ये, वसंतराव प्रधान, वीमल चौरडीया, डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डे, हिन्दूसिंह परमार, रामनारायण शास्त्री, डॉ. नवनीत महाजन, गोविन्द सांरग, मामा बालेश्वर दयाल, निर्भयसिह पटेल, मीश्रीलाल तिवारी, राजेन्द्र धारकर, रमेश बैस
आदि 700 के लगभग मीसाबंदियों का साथ मिला व जीवन के पल साझा करते हुए उनसे बहुत कुछ सीखने-समझने का मिला।कारण उस समय मेरी उम्र मात्र 23 वर्ष की थी। उस समय ही पूर्व प्रधानमंत्री मान. अटलजी के आव्हान पर मेरे सपनो का भारत कैसा हो विषय पर अपने अपने विचार मांगे गये थे। सैकड़ो देश भक्तों के साथ मैनै भी अपने विचार विस्तृत निबंध के रूप में लिख कर दिल्ली जेल भेजें।
उस समय की एक अविस्मरणीय घटना हुई जो आज भी मन मस्तिष्क पर अमिट है। हम लोग इन्दौर हाईकोर्ट मे धारकरजी के साथ तारीख करने गये थे।वहां हमारी पेशी मूल्ये सा. के समक्ष हुई थी। हमने अवैध रूप से बंदी बनाकार रखने का विरोध किया तथा छोडने का निवेदन किया, लेकिन कोई सुनवाई नही हूई। वापसी के समय भाभीजी (श्रीमती
संन्ध्या जी) धारकर सा. से मिलने हेतु आये थे एवं सभी के लिए नाश्ता लाये थे।हमारे साथ आये पुलिस वालो ने भाभीजी को मिलने से रोका तथा उनके साथ धक्का-मुक्की की और एक ने गालीगलौज तक अभद्रता की जिससें हम युवाओ को सहन नही हुआं। मैने और दो-तीन युवा साथियो ने पुलिस की इस गतिविधि का घोर विरोध किया तो वे हमे भी गाली देते हुए डंडे से मारने के लिए उद्यत हो गए। हमें भी डंडे पड़े लेकिन हमने कुछ डंडे खाने के बाद उनसे डंडा छिनकर उनकी ही पिटाई कर दी। इससे हाईकोर्ट मे हडकम्प मच गया।पुलिस के सायरन गुंजने लगे। अनहोनी की आंशका से कोर्ट परिसर मे उपस्थित व्यक्ति वकील आदि भाग गये। अगले दिन हमारी जैल मे सशस्त्र बल का मार्च हुआ। सभी मीसाबंदियों को अपनी-अपनी बैरक मे अंदर रहने की हिदायत दी गई। मै अपनी बैरक की फाटक कुदकर उनके सामने गया।उन्होने मुझे निशाने पर लेकर फायर की चेतावनी दी। मेरे पीछे दो-तीन मीसाबंदी और फाटक कुदकर आ गये। मैने उनसे जैल मे प्रवेश करने का सर्च वारण्ट मांगा। उनके पास नही था। वो मुझे अपने अफसर के पास ले गये। कानुनन सर्च वारण्ट बिना जैल मे कैसे आये, इसका उनके पास कोई जबाब नही था। उनकी मंशा हम मीसाबंदियों को डराने की थी। फिर वो लोग लौट गये।शायद हाईकोर्ट की घटना की पुनरावृत्ति रोकने का प्रयास था, कारण सुनवाई के लिए और मीसाबंदी कोर्ट जाते रहते थे। लेकिन मुझे आज भी गर्व है कि में भी देश के स्वाभिमान व लोकतंत्र की रक्षा के लिये कांग्रेसी जुल्म के खिलाफ निर्भीकता के साथ खड़ा रहा।