नई दिल्ली (kundeshwartimes)_ केंद्र सरकार ने शुक्रवार को संसद के मानसून सत्र के अंत में भारतीय दंड विधान को बदलने और उनमें आमूल-चूल परिवर्तन वाले लाने वाले विधेयकों को पेश किया. सरकार ने भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली की रीढ़ माने जाने वाले तीनों संहिताओं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए) में बदलाव का मसौदा रखा है और सभी नए कानूनों को इनसे बदला जाएगा.
इन प्रस्तावित कानूनों में जो प्रमुख बदलाव हैं, इनका देश के आम नागरिकों पर व्यापक असर पड़ने की संभावना है. ये असर कितना सकारात्मक, कितना नकारात्मक हो सकता है, इन पर डालते हैं एक नजर.
शून्य एफआईआर
नया कानून किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देता है, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो. हालाँकि, एफआईआर उसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में दर्ज होनी चाहिए. प्रस्तावित कानून नागरिकों को ई-एफआईआर दर्ज करने की भी अनुमति देता है, जहां शिकायतकर्ता को ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने के तीन दिनों के भीतर उस पर हस्ताक्षर करना होगा.
गिरफ्तारी से सुरक्षा
नया कानून छोटे-मोटे अपराधों के आरोपियों, या जो विकलांग हैं, या 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए गिरफ्तारी से एक नई सुरक्षा प्रदान करता है. जिन अपराधों में तीन साल से कम की सज़ा हो सकती है, उनमें डिप्टी एसपी रैंक से नीचे के अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती.
अधिक पुलिस जवाबदेही
किसी भी पुलिस स्टेशन में शून्य एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देने वाले कानून के साथ, पुलिस को पीसीआर के माध्यम से जानकारी शेयर करने की एक उचित प्रणाली बनाए रखनी होगी. राज्य सरकार को हर जिले और हर थाने में एक पुलिस अधिकारी नियुक्त करना होगा जो किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के संबंध में जानकारी रखने के लिए जिम्मेदार होगा. पुलिस किसी भी पीड़ित को 90 दिनों के भीतर उनके मामले की जांच की प्रगति के बारे में जानकारी देने के लिए भी बाध्य है. मामले में आरोपपत्र 90 दिनों के भीतर दाखिल किया जाना चाहिए (अदालतों के पास इस समय-सीमा को 90 दिनों तक बढ़ाने का विकल्प है) और मामले की जांच 180 दिनों के भीतर समाप्त होनी चाहिए. इसके अतिरिक्त, प्रत्येक जिले में नामित पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को सूचित करने के लिए जिम्मेदार होगा.
त्वरित न्याय
एक बार जब पुलिस द्वारा चार्जशीट दायर हो गई तो अदालत के पास मामले में आरोप तय करने और मुकदमा शुरू करने के लिए 60 दिन का समय होगा. एक बार मामले की सुनवाई पूरी हो जाने के बाद, न्यायाधीश 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाने के लिए बाध्य है, और उसके बाद 7 दिनों के भीतर फैसले की प्रति ऑनलाइन अपलोड करनी होगी. कुछ मामलों में फैसले का समय 60 दिन तक बढ़ सकता है.
पुलिस की शक्ति पर प्रतिबंध
प्रस्तावित कानून में जांच की निष्पक्षता के लिए पुलिस द्वारा की जा रही किसी भी तलाशी या जब्ती की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य है. यह रिकॉर्डिंग जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी. कानून अपराध स्वीकार कराने के लिए पुलिस द्वारा यातना के इस्तेमाल को भी अपराध मानता है, हालांकि इसमें कई शर्तें शामिल हैं.
जेलों में विचाराधीन कैदियों की रिहाई
प्रस्तावित कानून का उद्देश्य उन विचाराधीन कैदियों को स्वत: जमानत की अनुमति देकर भारतीय जेलों में भीड़ कम करना है, जो पहले ही अपनी अधिकतम सजा की आधी से अधिक सजा काट चुके हैं. पहली बार के अपराधी अपनी सजा का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत के पात्र होंगे, जबकि मुकदमा चलता रहेगा. जेल अधीक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए अदालत के समक्ष आवेदन किया जाए.
हिट-एंड-रन के लिए मिलेगी 10 साल की जेल
हिट-एंड-रन के मामलों में सजा की अवधि बढ़ाकर 10 साल कर दी गई है, अगर आरोपी घटना की सूचना पुलिस या मजिस्ट्रेट को नहीं देता है. स्नैचिंग जैसे कुछ अन्य सामान्य अपराधों में अगर पीड़ित तो अधिक गंभीर चोट लग जाती है तो अभियुक्त के दोषी साबित होने पर अधिक कठोर कार्रवाई की जाएगी.
त्वरित न्याय के लिए समरी ट्रायल्स
नया विधेयक छोटे अपराधों के मामलों में समरी ट्रायल करने की अनुमति देता है. कोई भी अपराध जिसमें तीन साल से कम की जेल की सजा हो, उसे छोटा अपराध माना जाएगा. समरी ट्रायल वर्चुअल मोड के जरिए किया जा सकता है.
बार-बार स्थगन नहीं
बार-बार स्थगन की संस्कृति को समाप्त करने के लिए, प्रस्तावित कानून एक वकील द्वारा किसी मामले में स्थगन की मांग करने की संख्या को दो तक सीमित कर देता है. किसी वकील की किसी अन्य अदालत में उपस्थिति (स्थगन की मांग करने वाले वकीलों द्वारा दिया जाने वाला सबसे आम कारण) कार्यवाही में देरी का आधार नहीं हो सकती है.
गवाह सुरक्षा
प्रस्तावित कानून एक गवाहों को बेहद जरूरी सुरक्षा प्रदान करता है. इसके तहत राज्य सरकार को संवेदनशील मामलों में गवाहों की सुरक्षा के लिए एक योजना तैयार करने की जरूरत है.
सजा के रूप में सामुदायिक सेवा
चोरी, अतिक्रमण, शांति भंग करना आदि जैसे छोटे अपराधों के लिए, अदालत अब सजा के रूप में सामुदायिक सेवा दे सकती है. इससे भीड़भाड़ वाली जेलों में भीड़ कम करने में भी मदद मिलेगी.
महिलाओं के अनुकूल परिवर्तन
नए बिल न केवल बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामलों में अधिक कठोर दंड का प्रस्ताव करते हैं, बल्कि वे यौन उत्पीड़न से बचे लोगों के लिए कानूनी प्रक्रिया को आसान बनाने का भी प्रयास करते हैं. यौन उत्पीड़न पीड़िता का बयान अब उसके घर में एक महिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में दर्ज किया जाएगा. उसके माता-पिता या परिवार वाले उसके साथ मौजूद रह सकते हैं. कानून किसी के लिए भी यौन उत्पीड़न से बचे व्यक्ति की पहचान का खुलासा करना अपराध बनाता है.
निजी रक्षा का अधिकार
प्रस्तावित कानून किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा घातक हमले के खिलाफ निजी रक्षा के अधिकार के तहत एक नए प्रावधान की अनुमति देता है.
मामले के दस्तावेजों का पूर्ण डिजिटलीकरण: किसी मामले से संबंधित एफआईआर से लेकर आरोप पत्र और अदालत के आदेश तक सभी दस्तावेज डिजिटल रूप में मामले में शामिल पक्षों के लिए उपलब्ध होंगे.
ऐसे बदलाव जिनसे पड़ सकता है नकारात्मक असर,पुलिस हिरासत पर कानून में बदलाव
मौजूदा कानून के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी की तारीख से अधिकतम 15 दिनों के लिए ही पुलिस हिरासत में भेजा जा सकता है. प्रस्तावित कानून में, हालांकि, पुलिस की हिरासत मांगने की शक्तियों का विस्तार किया गया है, जहां पुलिस अब अपराध के आधार पर गिरफ्तारी के 60-90 दिनों के भीतर किसी भी समय 15 दिन की हिरासत की मांग कर सकती है.
जमानत नियम नहीं, जेल अभी भी अपवाद नहीं
आम आदमी के लिए जमानत का रास्ता अभी सुगम नहीं हुआ है. अभी उसके पास जेल में सजा काटने का ही चारा बचा है. यहां आम आदमी के लिए कोई राहत नहीं है. डिफॉल्ट जमानत के लिए कोई नया विकल्प नहीं दिया गया है, सिवाय उन विचाराधीन कैदियों के, जिन्होंने कम से कम आधी सजा काट ली है.
किसी अभियुक्त की अनुपस्थिति में मुकदमा
किसी अपराध का आरोपी व्यक्ति, जो अनुपस्थित या फरार हो सकता है, को इस धारणा पर दोषी ठहराया जा सकता है और सजा सुनाई जा सकती है कि उसने निष्पक्ष सुनवाई के अपने अधिकार को छोड़ दिया है. नया कानून अदालत को मुकदमे को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है यदि आरोप तय होने के 90 दिन बीत चुके हैं और आरोपी अभी भी अदालत के सामने पेश नहीं हुआ है.
डिजिटल, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की जब्ती
नया कानून स्पष्ट रूप से जांच के दौरान फोन, लैपटॉप आदि जैसे डिजिटल उपकरणों को जब्त करने की अनुमति देता है. साथ ही, साक्ष्य अधिनियम में बदलाव के साथ, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को अदालत के समक्ष साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे इसे दस्तावेजों के रूप में भौतिक साक्ष्य के समान कानूनी प्रभाव मिलता है. ईमेल, संदेश, सर्वर लॉग, स्थान विवरण आदि सभी को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के हिस्से के रूप में शामिल किया जाएगा, जो अदालत में स्वीकार्य होगा.
आईपीसी के दायरे में ‘अपराध की आय’
विधेयक में एक नया प्रस्ताव जोड़ा गया है, जिसके अनुरूप एक पुलिस अधिकारी को किसी भी संपत्ति को कुर्क करने की शक्ति देता है, जिसे वह “अपराध की आय” मानता है. पुलिस अधिकारी ऐसी संपत्तियों को कुर्क कर सकता है जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण हो कि वह किसी आपराधिक गतिविधि के जरिए अर्जित की गई है.