संत सिरोमणी नामदेव जी की जयंती पर विशेष ऐसे थे सद्गुरु संत शिरोमणी नामदेव जी,प्रस्तुति-शिवरतन नामदेव (वरिष्ठ पत्रकार)

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कटरा- सद्गुरु संत शिरोमणि नामदेव जी भारत के प्रसिद्ध संत थे भक्ति की पराकाष्ठा को पार करने वाले नामदेव महाराज का जन्म 26 अक्टूबर 1270 कार्तिक शुक्ल एकादशी
रविवार को सूर्योदय के समय महाराष्ट्र के सतारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसे गांव नरसी बामणी में हुआ था ,भक्त नामदेव का जन्म शिम्पी (मराठी ) जिसे राजस्थान में छिपा भी कहते हैं, मध्यप्रदेश में यह जाति दर्जी नामदेव के नाम से जानी जाती है। परिवार में हुआ था , इनके पिता का नाम दामा सेठ और माता का नाम गोडा बाई था इनका परिवार भगवान विट्ठल का परम भक्त था,संत नामदेव के माता पिता अपने भरण पोषण के लिए कार्य करने से जो समय बचता वह ईश्वर आराधना में लगाते जिसका असर बाल नामदेव पर पड़ता चला गया गांव में ही एक मंदिर था जहां बालक नामदेव अपने समकक्षी बालकों को इकट्ठा करके जाते और मंदिर में बैठकर भजन करते ,गांव के सभी लोग उन्हें शुभ बालक कहते भक्त नामदेव धीरे-धीरे बैरागी स्वभाव के होते गए जब भी गांव में कोई साधु संत आते बालक नामदेव साधु-संतों के पास बैठते उपदेश भरे वचन बड़े ही चाव से सुनते भक्त नामदेव जब कुछ बड़े हुए तो उन्होंने संत बिशोवा खेचर को गुरु के रूप में स्वीकार किया विशोबा खेचर का जन्म स्थान पैठण था जो पंढर पुर से 50 कोस दूर ओड़िया नागनाथ नामक प्राचीन शिव क्षेत्र में है इसी मंदिर में विशोबा खेचर ने संत नामदेव को शिक्षा दीक्षा दी और अपना शिष्य बनाया ,संत नामदेव महाराज के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे संत नामदेव का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था उनकी पत्नी का नाम राजा वाई था विवाह के बाद माता पिता और पत्नी गृहस्ती चलाने के लिए कुछ व्यापार करने के लिए कहते लेकिन ईश्वर भक्ति में लीन संत नामदेव का मन व्यापार में नहीं लगता था उन्हें तो केवल भगवत भक्ति और तीर्थ यात्रा ही अच्छी लगती ,एक बार की बात है संत नामदेव जी महाराज तीर्थ यात्रा पर गए हुए थे यात्रा में दोपहर को एक पेड़ के नीचे उन्होंने रोटियां बनाई और झोले से घी निकालने के लिए पीछे घूमे इतने में ही एक कुत्ता आकर मुंह में रोटी लेकर भागने लगा जब नामदेव जी सामने देखा कि कुत्ता रोटी लेकर भाग रहा है तो वह हाथ में घी लेकर कुत्ते के पीछे भागते हुए कहने लगे हे मेरे नाथ, हे प्रभु सूखी रोटी मत खाइए रोटी पर थोड़ा सा घी तो लगा लेने दीजिए संत नामदेव की भक्ति देखकर कुत्ते में से भगवान प्रगट होकर संत नामदेव को संत शिरोमणि बना दिया ।ऐसा ही एक प्रसंग एक बार संत नामदेव तीर्थाटन पर थे उनके साथ और कई संत थे रात होने पर अबढ्या नागनाथ मंदिर पर रुक गए मंदिर के सामने कीर्तन करने लगे जिस पर पुजारी ने आपत्ति उठाई संत नामदेव जी मंदिर के पीछे जाकर कीर्तन करने लगे तो पूर्व मुखी मंदिर पश्चिम मुखी मंदिर हो गया संत नामदेव द्वारा विट्ठल की मूर्ति को दुग्ध पान , सुल्तान के आज्ञा से मृत गाय को जिंदा करना संत नामदेव को संत शिरोमणि नामदेव बनाया संत नामदेव के समय महाराष्ट्र में नाथ और महानुभाव पंथो का प्रचार था ,नाथ पंथ और महानुभाव पंथ अलग निरंजन की योग परक साधना का समर्थक वाह्य आडंबरों का विरोधी था इन पंथो में बहु देवोपासना का विरोधी होते हुए भी मूर्ति पूजा को सर्वथा निसिद्धि नहीं माना जाता था। इन पंथो के अलावा महाराष्ट्र में पंढरपुर के विठोबा विट्ठल की उपासना भी प्रचलित थी, भगवान विठोबा की विशेष पूजा अर्चना कार्तिक की एकादशी को होती है भगवान विठोबा के दर्शन के लिए वारी यात्रा की जाती है इस तरह की यात्रा करने वाले बारकरी कहलाते हैं संत शिरोमणि नामदेव इस संप्रदाय के प्रमुख संत माने जाते हैं संत नामदेव जी पंजाब सहित उत्तर भारत की कई यात्राएं किया उनके कई संत साथी जब समाधि ले लिए तो नामदेव जी अकेले हो गए तब शोक और बिछोह में समाधि के कई अभंग लिखे आपके अभंग गुरु ग्रंथ में आज भी पढ़े जाते हैं संत नामदेव जी घूमते हुए पंजाब के भट्टी वालस्थान पर पहुंचे फिर घुमान जिला गुरूदासपुर नामक नगर बसाया और मंदिर बनाकर यहीं पर तप किया यहीं पर विष्णु स्वामी परिशा भागवते जनाबाई ,चोखा मेला, मिलोचन आदि को नाम ज्ञान की दीक्षा दी ,संत नामदेव जी अपनी उच्च कोटि की आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए विख्यात हुए वह चमत्कारों के सर्वथा विरुद्ध थे ,वे मानते थे कि आत्मा और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है परमात्मा की बनाई हुई इस भूमि और संसार की सेवा करना ही सच्ची पूजा है इसी से साधक भक्तों को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है ,सभी जीवो को सृष्टा पालन करता बिट्ठल राम ही है जो इन सब में मूर्त भी है और ब्रह्माण्ड में ब्याप्त अमूर्त भी हैं , 80 वर्ष की उम्र में संत शिरोमणि नामदेव जी विट्ठल विट्ठल जपते जपते सन 1350 ईस्वी में इस भवसागर से पार चले गए चूंकि‌ संत शिरोमणि नामदेव जी शिम्पी छिपा दर्जी जाति में जन्म लिया था जिसके कारण दर्जी समाज के लोग अपने समाज के सद्गुरु श्री नामदेव जी के नाम नामदेव को जोड़कर उनको तन मन में बसाये रखना चाहते हैं ,आज ज्यादातर प्रांतों में दर्जी समाज के लोग जाति सूचक शब्द नामदेव लिखते हैं आइए हम सभी नामदेव समाज के लोग सद्गुरु संत शिरोमणि नामदेव जी की जयंती कार्तिक शुक्ल एकादशी को उत्साह पूर्वक मनाएं ,सद्गुरु संत शिरोमणि नामदेव महाराज की जय हो।
लेखक शिवरतन नामदेव वरिष्ठ पत्रकार।

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