सलेहा / जय चौमुख नाथ पुरारी करत प्रकाश हरत दुख भरी धन धन ग्राम पुनीता जहां बसे सिव हर गौरीसा जय जय जगदंब भवानी विघ्न हरण मंगल गुषा खानी चहूं देशि लोकपाल है ब्राजत भक्तन बीच संम्भु अवराजत पन्ना जिला जहां राजधानी जहां आवत आरत जो प्रावी प्रभु उपकार करत है जगका शंभू फल देते हैं मन का नित्य अमावस भक्त पधारें श्रद्धा से शंकर जी ढारे हो प्रसन्न भोले देते बर इच्छित फल पावे आए नर ब्रहना ने कुछ कल्प बनाया शिव पुराण मैं अद्भुत गया शुवरी हेतु किया तप भारी पंच रूप तब प्रकट पुरारी मुद्रा प्रथम पूर्व मुख जानो तीसर नयन चंद्रमा मानो कुंडल व्याल सुहावन शंम्भो रूप देख जग होइ अचम्भो रुप देख जग होइ अचम्भो दीक्षण दिशी मुख मख महा कराला पान कियो बिष मुख में धारा महिमा योगी,मुनी जन जानें पश्चिम दिशी सोहे त्रिपुरारी लिए समाधी सुशोभित भारी जगका करते हें कल्याण सबको अपना सेवक जान उर्त मुख है अदभुत भारी श्रृब्टी में शिव नर और नारी अर्ध नारे स्वर रूप सुहाये नारीका कुछ स्वांग रचाये पंचम मुख समाष्त का दाता ऊर्ध लिंग सबका मन भाता ध्यावे इन्हे जो नर मन लाई जन्म मरन ताको छुटजाई हो बसंत संत मन रंजन सुनकर आते हैं कीरत जन भक्त भाव से प्रभू पहचाननें कीर्तन गाय सांति सुखमानें बंम-बंम हर- हर त्रिपुरारी लिए समाधी सुशोभित भारी चौमुख नाथ दया के सागर देवों में वो सबसे आगर सकल जगत के सवारो सत्रुन को तुम रण में मारो जो गंगा जल आन चढावे सो सायुज्ज मुक्ति नर पावे करित निरंजनी आरती जो मन होई प्रसन्न देते इच्छित बर बिन संकर कीरति जानें प्रभु की र्कपा निश्चित मानें यह चालीसा शांति से पढे जो नर मन लाय पूरी हो मनोकामना विध्नसकल टरजाय,
*आरती चौखनाथ सरकार की*
ऊँ जय चौमुख नाथ स्वामी भक्त जनन हितकारी प्रभु अन्तर्यामी मंदिर भीतर राजत हैं प्रतिमां भारी सुख कारी दुखहारी अदभुत हवेल न्यारी ऊँ जय चौमुख नाथ तुम्हारी, मंदिर भीतर राजत है प्रतिमां भारी सुखकारी दुखहारी अदभुत हवेल न्यारी ऊँ.जय. जो आए सुखपाए ध्याए मनलाई सुखपाई दुखनाई कीरत जगपाई ऊँ.जय. चढत प्रसाद नारियल गंगाजल हर को थरत हला -हल मुख में जगकल्न कियो ऊँ.जय. दीन दयाल कहायो दीनन हित कारी श्रद्धा से जो ध्यावे करत र्कपा भारी ऊँ.जय.अहिमाला मुंडमाला चढा सिर सोहे कानन कुंडल चंदा त्रिभुंवन मन मोहे ऊँ.जय. चहुंमुख चम्मुख चौमुख नाम अनेका परमो र्दादश लिंग मिलकर अपनो रूप धरायो ऊँ. जय. करत निरंजन निशदिन आरति जो गावे पावे फल तीरथ को जो शिव को ध्यावे ऊँ.जय. हरी समर्पण रचना कार शिच्छक र्बिजभूषण धर्मपचरहा निवासी सेल्हा टू सलेहा