कोरोना से बचे कलाकार और आम लोगों को भूख से बचाया जाए : – मदन भारती दिल्ली

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  • नई दिल्ली – कोरोना का क़हर दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है और इस महामारी से मरने वालो की संख्या भी तेजी बढ़ रही है. अनलॉक पार्ट वन मे भी इन्हें नहीं कोई राहत. उधर सरकारे कोरोना से बचाव के तमाम प्रयास कर रही है जिसमें एक लॉक mडाउन भी है जो आंशिक तौर पर अब हटाया जा रहा है लेकिन लॉक डाउन के बहुत सारे साइड इफेक्ट भी सामने आये हैं औरआ रहे हैं जिसमें हताशा, निराशा, बेरोजगारी और भुखमरी मुख्य रूप से चिंतित करने वाला है, यह कहना है विख्यात जादू साहित्य लेखक और इवेंट इंडस्ट्री से पिछले तीस वर्षों से जुड़े मैजिक इवेंट दिल्ली के डायरेक्टर मदन भारती का.
    श्री भारती के अनुसार अब यह कहा जाने लगा है कि हमे कोरोना साथ ही जीना सीखना पड़ेगा. आज हालात यह है कि ..रोज़ कमाने खाने वाले एक करोड़ से ज्यादा लोगों मे बीमारी से कहीं ज्यादा बेरोजगारी और भूख का भय समा गया है, लोग मनोरोग की चपेट मे आ गए हैं ।चाहे जादूगर हो या किसी भी कला क्षेत्र का कलाकार, उनके सहायक हो , मजदूर वर्ग हो या फुटपाथ वाले दुकानदार,श्रेणी विहीन असंगठित मजदूर, सब के दिलों दिमाग मे भूख से मरने का डर व्याप्त हो गया है.कस्बाई क्षेत्र के और सरकारी संरक्षण विहीन पत्रकार साथी भी ऐसी ही स्थिति मे है.
    श्री भारती कहते हैं कि जिस तरह फ़िल्मी दुनिया की समस्याओं को महाराष्ट्र और बंगाल की सरकार ने गंभीरता से लिया है, वैसे ही सभी कलाकारो, जादूगर शो, मेला, म्यूजिक शो आदि के बारे मे भी गंभीरता से निर्णय लिया जाए, छोटे दुकानदारों का भी ख्याल रखा जाए. कई राज्य ने कलाकारों को एक एक हजार रुपये की सहायता के लिए भी कलाकारों के सामने ऐसे ऐसे सवाल और शर्त रख दिए मानो वो आई एस अधिकारी का इम्तेहान हो.. ना पास करेगा ना देंगे एक रुपये. * श्री भारती कहते हैं कि बेकार पड़े सरकारी जमीन और नगर के हॉल मेला और जादू शो के लिए हर शहर मे निशुल्क दिया जाए*. हर कार्यक्रम के साथ उचित गाइड लाइन तय कर दिए जाए, सरकारी होर्डिंग्स भी ऐसे आयोजन के प्रचार हेतु निशुल्क दिए जाना जरूरी होगा. राजस्व वसूली की जगह सहायक मोड पर आए सरकार और निगम, पारिषद टीम. ये सभी कलाकार ज़न संदेश पहले भी बिना एक रुपये लिए प्रसारित करते रहे हैं जो एक तरह से सरकार के ऊपर कर्ज है कलाकार समाज का. आज भी सरकार के सभी संदेश ऐसे कार्यक्रम के द्वारा भी ज़न ज़न तक पहुंचाये जाए पर कलाकारों को सहूलियत संरक्षण मिले . उनके लिए तत्काल राहत पैकेज के द्वारा इस उपेक्षित वर्ग को सहारा दिया जाना वक्त का तकाज़ा है, पत्रकारिता के लोगों (वीआईपी नहीं) को भी संरक्षण मिले क्योंकि ये वास्तविक देश सेवी समाज सेवी हैं. मजदूरों और रोज कमाने खाने वाले जिनका नाम कहीं किसी लिस्ट मे नही उनकी तत्काल मदद होना चाहिए. उन्हीं के वोट से सरकारे बनतीं और गिरती भी है. लोकतांत्रिक व्यवस्था असली नायकों को नजरअंदाज ना करे अन्यथा भावी इतिहास इस बुरे दौर मे सरकार की भूमिका पर सदियों तक सवाल उठाता रहेगा ।

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