मध्यप्रदेश में लॉकडाउन के दरमियान साफ दिखा एम०पी०एस०आर०टी०सी० की बंद बसों का परिणाम, कुंडेश्वर टाइम्स प्रबंध संपादक शिवरतन नामदेव की कलम से

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कटरा ( कुंडेश्वर टाइम्स ) मध्य प्रदेश में उमा भारती के शासनकाल में मध्य प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन को बंद कर दिया गया था , जनता के अहम सरोकार को सार्वजनिक परिवहन के सहारे छोड़ दिया गया जो मनमानी तरीके से आम जनता के जेब में डाका डाल रहे थे, कोई देखने सुनने वाला नहीं था डीजल की कीमत यदि एक रुपए बढ़ती थी तो बस आपरेटर सीधे ₹10 रुपए किराया बढ़ा देते थे , फिर डीजल की कीमत भले ही घट जाए पर किराया नहीं घटता था, उसके बावजूद भी जनता चुप थी कभी किसी ने सरकारी बसों को पुनः चलाने की मांग नहीं किया राजनीतिक पार्टियों ने भी कभी सरकार से मांग नहीं किया कि मध्य प्रदेश राज्य परिवहन को पुनः चालू किया जाए इस दौरान सरकारें भी बदली पर इस विषय पर सबने चुप्पी साध रखी थी देखने में आया कि जनता के सरोकार से सरकार व राजनीतिक पार्टियो का कोई लेना देना नहीं उन्हें केवल अपनी सत्ता को एंन केन प्रकारेण कायम रखना है कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉक डाउन हुआ देश के आवागमन के सभी साधन बंद कर दिए गए जिसमें मध्य प्रदेश की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी थी, विगत 6 माह से यात्री वाहन ना चलने से मध्यप्रदेश के विशेष तौर से वह गरीब तबका जिसके पास निजी वाहन नहीं है अत्यंत परेशानी का सामना किया । हमारे पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में 2 माह पहले ही सरकारी बसें चलने लगी थी लेकिन मध्य प्रदेश में प्राइवेट बस ऑपरेटरो ने 50% किराया बढ़ाने एवं टैक्स छूट की मांग को लेकर बसों का संचालन नहीं किया, टैक्स छूट की माग तो जायज है पर 50% किराया बढ़ाना तो सीधे-सीधे जनता के बजट पर डाका है, अब प्रदेश सरकार निर्णय नहीं कर पा रही है की करे तो करे क्या। आज यदि सरकारी बसे होती तो प्राइवेट बस ऑपरेटर अपने अड़ियल रवैया कबके छोड़ चुके होते। आज केंद्र सरकार द्वारा सभी सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है, हो सकता है केंद्र सरकार को इसमें फायदा नजर आ रहा हो लेकिन मेरा मानना है कि विषम परिस्थितियों के लिए सरकारी संस्थान जितने उपयोगी साबित होंगे उतने सार्वजनिक क्षेत्र नहीं होंगे, भला कल्पना करिए कि जब सब कुछ सार्वजनिक हो जाएगा तब मूल्य वृद्धि को सरकार कैसे रोक पाएगी, मध्यप्रदेश में सरकारी बसों के न होने का यह परिणाम है कि सरकार के लाख प्रयास के बावजूद भी प्राइवेट बस ऑपरेटर बस चलाने को तैयार नहीं है,यह सब जनता अपनी खुली आंखों से देख रही हैं फिर भी सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में जाने का विरोध कोई नहीं कर पा रहा है देशवासियों अभी भी समय है रोक सको तो रोक लो सरकारी संस्थानों को बिकने से नहीं तो मध्यप्रदेश की बस सेवा जैसा ही हाल होगा ।

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