विपक्ष कुर्सी की बेचैनी में लोकतंत्र पर हमलावर है । लोकतंत्र का सबसे बड़ा गुनहगार विपक्ष सरकार के नाम का रोना क्यों रो रहे हैं -राजा गौतम

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नागपुर (kundeshwartimes)- दस दशकों का हिसाब मांगे जाने से विपक्ष की बेचैनी सिर पर सवार होकर बोल रही है संवैधानिक संस्थाओं, और लोकतंत्र के ऊपर अनैतिक बयानबाजी कर लोकतंत्र को आशंकित कर गुमराह किया जा रहा है। न्याय पालिका , व्यस्थापिका तथा कार्यपालिका पर अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं आखिर कुर्सी के लिए विपक्ष इतनी जल्दी में क्यों है ? कांग्रेस अपने गुनाहों की सजा मिलने पर न्यायपालिका के ऊपर सवाल खड़े करती है तो क्या ऐसा करने से वह पाक साफ हो जाएगी । अखिलेश यादव रहे हों या ममता बैनर्जी , नीतीश कुमार हों या अब्दुल्ला , लालू हो या केजरीवाल ,राहुल हो या दिग्विजय इन सभी के शासनकाल को लोकतंत्र ने बहुत करीब से देखा है इन गुनाह के गुनहगारों का कमाल माफिया अतीक , विकास दुबे, धारा 370 और दिल्ली के शाहीन बाग का हत्याकांड अन्य कई साजिशें देश के सामने है । सवाल यह है कि विपक्ष विकास को पीछे धकेलकर कुर्सी के लिए इतना क्यों आतुर है ? 15 लाख, पेट्रोल ,डीजल, मंहगाई, बेरोजगारी , के बदले अच्छी सड़कें , एम्स हॉस्पिटलों , कालेजों का निर्माण , भ्रष्टाचारियों पर नकेल, इनके सवालों के लिए काफी नहीं है । विपक्ष अपने गुनाहों को छुपाने के लिए बेबुनियाद मुद्दों को हवा देकर अपनी आबरू कैसे बचा पाएगा क्या केजरीवाल जैसे फरेबी या लालू जैसे घोटालेबाज , अथवा ममता बैनर्जी जैसे हिंसक महिला ही विपक्ष का नेतृत्व करेंगे ?

गहरी चिंता का विषय यह की राहुल गांधी जब अपने ही देश की छवि और गरिमा के विरुद्ध विदेशों में बयानबाजी करते हैं तो इसका मतलब साफ है कि उन्हें राजनीति का ककहरा भी नही आता है वैसे भी राहुल गांधी के बयानों को विपक्ष ही मंथन कर उनकी गंभीरता पर सवाल खड़े करते हैं । सबसे बड़ी बात यह की विचारों के द्वंद में उलझा विपक्ष अंधेरे में तीर छोड़ रहा है वह विष बुझा तीर उन्हें खुद पता नही की वह मोदी की भाजपा को कम लोकतंत्र को अधिक घायल करता है ।दुनिया की बड़ी से बड़ी सर्वेक्षण रिपोर्टें मोदी को पूरे विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता बता रही हैं और उसी व्यक्ति को राहुल गांधी चोर चौकीदार या अन्य अपशब्दों का प्रयोग करते हैं । सच्चाई की स्वीकारोक्ति करने के लिए नेताओं को गंभीर चिंतन का पाठ मोदी और योगी से सीखना चाहिए । स्वयं सेवक संघ की भूमिका सवाल खड़े करने वाले या उन्हें पानी पी पी कर गरियाने वाले अपने गिरेबान में झांकें की जिस संगठन का विस्तार विदेशों तक फैला है उसे आप गाली दे रहे हैं इसका मतलब साफ है आप उन करोड़ों लोगों के लोकतंत्र को गाली बक रहे हैं । आपका दल अलग हो सकता है , हो सकता है की सहमति असहमति हो सकती है लेकिन भारतीय संस्कृति के प्रति हमारे बयानों में विनम्रता की जगह चिल्लाकर झल्लाना लोकतंत्र के अनुरूप कतई नहीं हो सकता है ।

सबसे बड़ी बात

आजादी के बाद चाइना के स्वर हमेशा हमारे विरुद्ध मुखर रहे हैं चाहे वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता का विषय रहा हो या पाकिस्तानी आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई का लेकिन राहुल गांधी उसी चाइना में जाकर शी जिनपिंग के साथ गुटर गूं करते हैं । देश में मोदी को हटाने के लिए लामबंद होने जा रहे विपक्षी दलों में किसी नेता के पास नेतृत्व की क्षमता का मूल्यांकन भी हमारा लोकतंत्र कर रहा है कि किसे माना जाय कि कौन नेतृत्व कर सकता है यह देखने के बाद लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं की मोदी की तुलना में न अंदर और न बाहर कोई नेता नहीं है ।
यह बात अलग है की सवा अरब की आबादी वाले देश में कई समस्याएं आज भी अनसुलझी हैं ।

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