सूचना के अधिकार विषय को लेकर आयोजित किया गया वेबिनार,कुंण्डेश्वर टाइम्स सह सम्पादक विकास भारद्वाज”पाठक की रिर्पोट

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“ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना के अधिकार कानून के प्रति जागरूकता जरूरी: राहुल सिंह”

तमरी (नि०प्र०)

सूचना के अधिकार के क्षेत्र में नित नए आयाम गढ़े जा रहे हैं. अभी तक तो आपने परंपरागत पेशी और सुनवाई ही सुनी होगी. फिर आया वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जिसमे शासकीय भवनों और एनआईसी सेंटर पर बैठकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हो रही हैं। इसके बाद व्हाट्सएप और ट्विटर के माध्यम से शिकायतों और अपीलों को लेने की बात आ रही थी. निश्चित ही व्हाट्सएप और ट्विटर पर सुनवाई की शुरुआत भी पूरे भारत वर्ष में पहली मर्तबा मप्र से ही प्रारम्भ हुई थी जिसमे मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने ही शुरुआत की थी जो एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ.
अभी यह सब ज़्यादा पुराना नही हुआ की ज़ूम मीटिंग का भी दौर चालू हो चुका है जिसमे आरटीआई लगाने और इसे जानने के इच्छुक महानुभावों के लिए जानकारी और डिस्कशन का अच्छा खासा प्लेटफॉर्म तैयार हो गया है.

मप्र के सूचना आयोग के इतिहास में ज़ूम मीटिंग लेने वाले राहुल सिंह बने पहले सूचना आयुक्त


बता दें की ज़ूम मीटिंग अथवा गूगल मीट तो बहुत समय से हो रही है लेकिन ज्यादातर इसका प्रयोग प्रोफेसनल गैर प्रोफेशनल और प्राइवेट किश्म के कार्यों में किया जाता रहा है. संभव है की कुछ विभागीय शासकीय कार्यों की जानकारी प्रेषित करने अथवा चर्चा के लिए भी इन प्लेटफॉर्म का प्रयोग हो रहा हो लेकिन यहां पर बताना चाहेंगे की सूचना आयोग के इतिहास में यह ऐसा पहली मर्तबा हुआ है जब किसी सूचना आयुक्त ने अपने छुट्टी के महत्वपूर्ण दिन रविवार को अपना कीमती ढाई घण्टे का समय दिया हो और बहुत ही आम किश्म के आवेदकों और नवशिखिये तक लोगों को सुनकर ज़ूम मीटिंग वेबिनार के माध्यम से समस्या का समाधान किया हो.

ज़ूम मीटिंग में कौन कौन रहे सम्मिलित

भोपाल से ज़ूम मीटिंग में प्रमुख अतिथि रहे सूचना आयुक्त राहुल सिंह के अतिरिक्त ज़ूम मीटिंग में पूरे मप्र के अतिरिक्त भी अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड के भी आरटीआई और मीडिया कार्यकर्ता उपस्थित रहे. कुल मिलाकर रविवार 14 जून को शुबह 11 बजे से ज़ूम मीटिंग प्रारम्भ हुई जो लगभग 1 बजकर 30 मिनट तक लगभग ढाई घंटे तक चलती रही. अमूमन ज़ूम मीटिंग का समय निर्धारण बाई डिफ़ॉल्ट 40 मिनट से 1 घण्टे तक ही होता है लेकिन इसमे मीटिंग ढाई घंटे तक चली.

इस मीटिंग में सम्मिलित होने वालों की कुल संख्या 50 तक गयी जिसमे समय समय पर लोग जुड़ते रहे. अंत तक लगभग 25 लोग मीटिंग में शेष बचे रहे. इस प्रकार लगभग डेढ़ बजे थ मीटिंग समाप्त हुई.

ज़ूम मीटिंग में प्रमुख अतिथि श्री राहुल सिंह के अतिरिक्त वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह,अमित मिश्रा,देवेंद्र सिंह, एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, अधिवक्ता शिवेंद्र मिश्रा, सामाजिक कार्यकर्ता बीके माला, देवी अहिल्या के पत्रकारिता के छात्र स्वतंत्र शुक्ला,वंदना रेवांचल,अनूपपुर से कार्यकर्ता विनीता मिश्रा, इंदौर से आरटीआई कार्यकर्ता अंकित मिश्रा, राजस्थान से आरके मीणा, झारखंड से एके सिंह, एवं नई दिल्ली से वसीम अंसारी, अमित शुक्ला,सुरेंद्र पण्डेय, राघवेंद्र दुबे, प्रदीप उपाध्याय सहित दर्जनों लोग सम्मिलित हुए.

क्या क्या रहे ज़ूम मीटिंग के मुद्दे

ज़ूम मीटिंग का उद्देश्य आरटीआई और इसका ग्राम पंचायतों में प्रभावी क्रियान्वयन था। अतः ग्राम पंचायतों में आने वाली समस्यायों को लेकर ही इस ज़ूम मीटिंग का उद्देश्य रखा गया था. यद्यपि कुछ पार्टिसिपेंट्स ने ग्राम पंचायतों से भी हटाकर कुछ मुद्दों जैसे हॉस्पिटल, एनजीओ, पुलिस और अन्य विभागों से संबंधित प्रश्न पूँछे जिनका सूचना आयुक्त राहुल सिंह के द्वारा समाधान किया गया.
शुरुआत में वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह और अमित मिश्रा ने भी आरटीआई से जुड़ी समस्याओं को लेकर अपनी बात रखी और कानून को कैसे बेहतर ढंग से उपयोग किया जाय इस पर अपना विचार रखा।

पंचायतों में धारा 4 के तहत साझा जानकारी कहां तक सही ..?

आज पंचायतों में सबसे बड़ी बात यह है की सब जानकारी वेब पोर्टल में मौजूद है लेकिन उस जानकारी के आधार पर शिकायत करने पर कुछ विभाग इसे प्रमाणित मानने से इनकार कर देते हैं तो इस विषय मे एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी एवं प्रदीप उपाध्याय द्वारा प्रश्न था की क्या सील ठप्पा लगा हुआ और लोक सूचना अधिकारी के हाँथ से प्राप्त कागज जी प्रामाणिक है और वेबसाइट से प्राप्त यह दस्तावेज नही? इस पर सूचना आयुक्त का कहना था की जिस प्रकार कोर्ट के निर्णय आज डिजिटल समय में ऑनलाइन हैं और हम उसे किसी भी कंप्यूटर में बैठकर प्रिंट लेकर प्रस्तुत कर देते हैं इसी प्रकार पंचायत अथवा किसी भी विभाग की वेबसाइट में साझा की हुई जानकारी प्रामाणिक होती है तभी वह साझा की जाती है और यह जानकारी ज्यादातर आरटीआई की धारा 4 के तहत विभागों को स्वयमेव ही साझा करनी होती है इसलिए इसको रिजेक्ट करने का सवाल ही पैदा नही होता. इंदौर में एक पत्रकार के प्रश्न के जबाब में श्री सिंह ने बताया की पत्रकार इस जानकारी को लेकर उस पंचयती कार्य का भौतिक निरीक्षण कर अपनी मीडिया रिपोर्ट तैयार कर सकते हैं.

रीवा के कृष्ण नारायण दुबे के एक प्रश्न पर जिसमे उन्होंने सेंट्रल गवर्नमेंट के सेन्सस डेटा और समग्र पोर्टल पर दर्ज सेन्सस डेटा को लेकर भिन्नताओं पर प्रश्न खड़ा किया और कहा की यह दोनो जानकारी अलग अलग होने से परस्पर विरोधाभासी हैं अतः इस पर कार्यवाही की जाए. जिस पर सूचना आयुक्त श्री सिंह ने कहा की आप धारा 18 के तहत शिकायत भेजें हम संबंधित विभाग पर कार्यवाही करेंगे.

रीवा से अरुणेंद्र पटेल ने बताया की उनकी पंचायत की आफिस कभी नही खुलती और हमेशा ताला ही जड़ा रहता है इसके लिए वह क्या करें? इस पर आयूक्त श्री सिंह ने कहा की इसकी शिकायत संबंधित पंचायत सीईओ को की जानी चाहिए और महीने के चार पांच कार्यालयीन दिनों में जाकर उस दिन के न्यूज़पेपर के साथ में बन्द आफिस की फ़ोटो और वीडियो बनाकर शिकायत करनी चाहिए. 7 दिन देखा जाना चाहिये की क्या कार्यवाही होती है. फिर आरटीआई लगाकर जानकारी मागी जाय की कितने दिन कार्यालय खुला रहा. यदि जानकारी गलत दी जाए तो सुनवाई के दौरान आयोग के समक्ष पूर्व में लिए गए वह फ़ोटो वीडियो दिखाया जाय और गलत जानकारी दिए जाने के कारण लोक सूचना अधिकारी के ऊपर कार्यवाही की जाएगी.

रीवा के कोट नईगढ़ी से राघवेंद्र दुबे ने पुलिश विवेचना और एफआईआर से संबंधित जानकारी छुपाए जाने के विषय में शिकायत की जिस पर आयुक्त श्री सिंह ने बताया की पुलिश काफी जानकारी साझा नही करती क्योंकि उससे उस अपराध की विवेचना और जांच पर प्रभाव पड़ता है लेकिन जिन प्रकरणों का न्यायालय चालान बना दिया गया है और प्रकरण न्यायालय पहुंच चुके हैं उससे संबंधित दस्तावेज पुलिश को देना चाहिए और वह दस्तावेज पुलिश छुपा नही सकती. लेकिन जहां तक सवाल विवेचना का है उसमे कुछ दस्तावेज पुलिश साझा नही करती. इस बीच उन्होंने एक सतना के पत्रकार के ऊपर लगाए एक प्रकरण का हवाला दिया जिसमे उस पत्रकार द्वारा सूचना आयुक्त के समक्ष शिकायत की गयी थी की आरोप गलत हैं और पुलिश फंसा रही है जिंसमे सूचना आयुक्त को रीवा रेंज के तत्कालीन आईजी को पत्र लिखकर बन्द लिफाफे में जानकारी मंगवाई थी और कार्यवाही की थी जिसमे यद्यपि सीधे आरटीआई आवेदक और पीड़ित को जानकारी गोपनीयता भंग होने की दृष्टि से नही मिली थी लेकिन बन्द लिफाफे में सूचना आयोग को जरूर भेजी गयी थी.

आयोग के आदेशों का कंप्लायंस क्रियान्वयन न होना एक बड़ी समस्या.?

इस बीच रीवा जिले से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा और शिवेंद्र मिश्रा द्वारा बताया गया कि रीवा जिले के कई मामले उनके स्वयं के और कुछ उनके क्लाइंट के ऐसे हैं जिनमे सूचना आयोग वर्षों पुराने आदेश के वावजूद भी उन आदेशों का क्रियान्वयन और कंप्लायंस सम्बंधित लोक सूचना अधिकारियों द्वारा नही किया गया है। जिससे सूचना आयोग के अवमानना की स्थिति निर्मित हो चुकी है। जिस पर सूचना आयुक्त श्री सिंह ने कहा कि ऐसे मामलों में तत्काल आयोग को लिखित शिकायत की जाकर ध्यानाकर्षण किया जाना आवश्यक है। आयोग इस पर कार्यवाही जरूर करेगा।
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता बीके माला द्वारा कहा गया कि जिले और प्रदेश के नए आरटीआई आवेदकों को आरटीआई एक्ट की कम जानकारी होने से परेशान रहते हैं कि कहां कैसे आरटीआई लगाई जाए और कहां अपील की जाय इसलिए आयोग एक हेल्पलाइन नंबर चालू कर दे तो लोगो की आसानी रहेगी। इस पर आयुक्त श्री सिंह ने बताया कि पहले ही आयोग शिकायत सुनने के लिए बैठा है और चूंकि आयोग की एक न्यायिक प्रक्रिया है इसलिए इस विषय मे एनजीओ और सामाजिक संगठनों को सामने आना चाहिए।

आरटीआई लगाने से ग्रामीण क्षेत्रों में दूरी क्यों ?

सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने कहा की अमूमन आरटीआई कानून की आवश्यकता ही ग्रामीण क्षेत्रों के लिए हुई थी क्योंकि शहरी क्षेत्रों में पहले से ही मीडिया और जागरूक एक्टिविस्ट थे लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों एवं ग्राम पंचायतों को बेहतर बनाकर कैसे महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा को साकार किया जाय इस उद्देश्य के चलते आरटीआई कानून की शुरुआत हुई थी. पर आज तक आरटीआई कानून को मजबूती नही दी जा सकी है उसका एक कारण अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा और जागरूकता की कमी है. ज्यादातर पढ़े लिखे लोग ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काम करने से कतराते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के वासिंदे उतने सक्षम नही होते की भ्रष्ट्राचार की समस्याओं को लेकर ज्यादा समय तक लड़ पायें. इसलिए आज सबसे बड़ी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत निकाय स्तर पर आरटीआई कानून को मजबूत बनाना है. इसीलिए इस प्रकार की ज़ूम मीटिंग और वेबिनार के माध्यम से भी जनजागरण फैलाया जाकर आरटीआई कानून को गाँव गाँव मजबूत बनाया जाय.

प्रत्येक रविवार को 11 से 12 बजे शुबह होगी ज़ूम मीटिंग

दिनांक 14 जून 2020 से सूचना आयूक्त श्री राहुल सिंह द्वारा ज़ूम मीटिंग का श्रीगणेश कर दिया गया है. अब यह ज़ूम मीटिंग प्रत्येक रविवार को 11 से 12 बजे शुबह के बीच लगभग 45 मिनट से 1 घण्टे के बीच हुआ करेगी. यद्यपि पहली ज़ूम मीटिंग में काफी संख्या में लगभग 50 के आसपास लोग जुड़े जिन्होंने अपनी अपनी क्षेत्र से जुड़ी समस्याएं रखीं और सूचना आयुक्त का मार्गदर्शन प्राप्त किया.

विकास भारद्वाज”पाठक”सह सम्पादक कुंण्डेश्वर टाइम्स

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