“फलाने” भाग-1 अवश्य पढ़िए, सामयिक आलेख लेखक -विकास भारद्वाज “पाठक” पत्रकार एवं बघेली रचनाकार

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……….. फलाने………

फलाने मानव जाति की एक ऐसी प्रजाति से आते हैं जिनका गोत्र बिन पेंदी के लोटा का मौसेरा भाई है।समाज में हर जगह फलाने की चर्चा जोरों से होती है।धातुओं में भी द्रव के रूप में पारा अपवाद है परंतु फलाने एक ऐसे प्राणी हैं जिनके गुणधर्म में कोई अपवाद नहीं है।मैंने बचपन एक बार अपने पिता जी से कहा कि मैं आज भैंस चराने नहीं जाऊंगा उन्होंने झट्ट से बातों-बातों में उठाकर मुझे दइ मारा,कहने लगे कि फलनमा दिन भर गोरुआरी करता है और तुम हो कि घड़ी पहर भी घर का काम-काज नहीं करते।
फलाने ने स्कूल के दिनों में भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा,विद्यार्थियों के बीच में मेरा अलग ही रुतबा था।पढ़ने-लिखने के अलावा स्कूल जाकर मैं वो सारे काम करता था जो वहां से संभव होते थे।जैसे स्कूल से सटे तालाब में जाकर पंचाइत लगाना,हालांकि मेरी पंचायत में मेरे दरबार के सभी हितुआ शामिल होते थे।उन दिनों स्वच्छ भारत मिशन नहीं चल रहा था।गांव की विशुद्ध सरकारी स्कूल में शौचादि क्रिया से निवृत्त होने के लिए तालाब का रुख करना होता था और सुबह से शाम तक यह क्रम चलता जाता था।परीक्षा परिणाम में मैंने घरवालों की आशाओं को चकनाचूर कर दिया था हालांकि कृपांक ने साथ दिया तो मैं साफ-सुथरा उत्तीर्ण हो गया था। घरवालों ने फिर फटकार लगाया कि फलनमा के नंबर तोसे कतेकउ निकहे आए हैं।
मैंने आगे की पढ़ाई के लिए शहर का रुख किया तो सब बदला-बदला नजर आ रहा था।हमारी ग्यारहवीं कक्षा की कक्षाध्यापिका जी बहुत तेज तर्रार थीं।अंग्रेजी भाषा की व्याख्यता का पदभार संभालने की खुशी उनके चेहरे से साफ झलकती थी और वो मेरे कक्षा के विद्यार्थियों के लिए बहुत कट्टर थीं।अम्बुज और गुरू जैसे विद्यार्थियों का पढ़ाई लिखाई से छत्तीस का आंकड़ा था।प्रतिदिन स्कूल न आने वाले विद्यार्थियों की सूची जारी की गई अम्बुज का नाम सूची में प्रथम वरीयता प्राप्त था।कक्षा से अमन का नाम पृथक करने का फरमान जारी कर अभिभावकों को पेशी में बुलाया गया।माताजी का विद्यालय आना हुआ उन्होंने बताया कि अमन के हाथ की हड्डी टूट गई थी मेडिकल रिपोर्ट भी देख लीजिए।आप नाम जोड़ दीजिए नहीं तो यह बात जब बाहर फैलेगी तो फलनमा न जाने क्या-क्या कहेगा।
मेरे पड़ोस के दो विद्यार्थियों को गणित संकाय में दाखिला दिलवाया गया यह कहकर कि फलाने गणित लय के पढ़िन है। बेचारे विद्यार्थियों ने दिन दुगनी रात चौगुनी मेहनत करने के बावजूद भी खुद को अप्रिय संकाय में फ़ैल होने से नहीं रोक पाए। परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद मैं भी पड़ोसी होने के नाते हाल-चाल जानने गया था। विद्यार्थियों के पापा बिन सकुचाए विद्यार्थियों को इस बात के लिए धोएं जा रहे थे कि फलनमा त नहीं फैल भ तय काहे होइ गये।
मेरी निजी जिंदगी में फलाने की अहिमक दखलंदाजी है।मैं सत्तर की गति से डिलक्स लोगों की डिलक्स मोटरसाईकिल पर सवार होकर प्रवाहमान था कि बगल से गुजर रहे चाचा जी ने मुझे रोक कर समझाइश दिया कि तेज रफ्तार से चलने की वजह से फलनमा दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और जिंदगी की जंग लड़ रहा है जबकि उसने हेलमेट भी लगाया था और तुम बिना हेलमेट के ही उड़ रहे हो संभल जाओ नहीं फलनमा की तरह हाल होगा तुम्हरा।
फलाने राजनैतिक दलों को नहीं देखते हैं यह हर जगह लागू हो जाते हैं।इनकी रंगभेद,जातिभेद, लिंगभेद आदि से दूर-दूर तक कोई नातमानी नहीं है। गरीब-अमीर,मोटा-पतला,हल्का-भारी,अफसर-नौकर,चोर-पुलिस,याचक-दाता,यजमान-पण्डित सब जगह फलाने का गुणधर्म समान रहता है।
हर दूसरा व्यक्ति हर पहले व्यक्ति के लिए फलाने होता है।यह भी फलाने,वह भी फलाने,सबके अंदर फलाने का घर बसता है जो हमें मन रूपी सूक्ष्मदर्शी से साकार दिखता है।परिस्थितियों के हिसाब से फलाने बदलते रहते हैं। फिलहाल मैं भी फलाने और आप भी फलाने..!!

…. :- विकास भारद्वाज’पाठक’-:

विकास भारद्वाज”डिप्टी हेड कुंण्डेश्वर टाइम्स”

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